कांग्रेस को जीतने लायक उम्मीदवारों के लाले
भोपाल । भाजपा तो राम मंदिर के मुद्दे पर ही केन्द्र में सरकार बनाने में सफल साबित होगी, क्योंकि ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स के अलावा अभी उसने बिहार में भी जोड़तोड़ कर ही ली है। दूसरी तरफ हरल्ली कांग्रेस एक के बाद एक गलतियां करती जा रही है और इंदौर सहित मध्यप्रदेश की 29 सीटों पर भी उसे दमदार चेहरे नहीं मिल रहे हैं। मप्र में तो जबरदस्त टोटा है। कोई भी नेता चुनाव लडऩे को तैयार नहीं। हालांकि ज्यादातर नेता लोकसभा सहित कई चुनाव हार भी चुके हैं, अलबत्ता राज्यसभा की जो एक सीट है उसके लिए कई दावेदार दौड़ में हैं। दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव की तरह ही संघ ने भी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सक्रियता बढ़ा दी। संघ प्रमुख हफ्तेभर के दौरे पर मध्यप्रदेश में रहेंगे।
अभी 2 अप्रैल को मध्यप्रदेश की 5 राज्यसभा सीटें खाली हो रही है, जिसके लिए आयोग ने चुनाव कार्यक्रम भी घोषित कर दिया है। 8 फरवरी से नामांकन की प्रक्रिया शुरू होगी, जो 15 फरवरी तक जारी रहने और 20 फरवरी को नाम वापसी के बाद आवश्यक पडऩे पर 27 फरवरी को सुबह 9 से शाम 4 बजे तक मतदान कराया जाएगा और फिर मतगणना के बाद परिणाम घोषित किए जाएंगे। हालांकि इन 5 सीटों में से 4 पर तो भाजपा का और सिर्फ एक सीट ही कांग्रेस को मिलेगी। भाजपा के चूंकि 163 विधायक हैं, लिहाजा 4 सीटें उसको मिलना तय है और कांग्रेस के 66 विधायक हैं, लिहाजा उसे एक सीट ही प्राप्त होगी। भाजपा के धर्मेन्द्र प्रधान, अजयप्रताप सिंह, कैलाश सोनी और डॉ. एल मुरुगन का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, तो कांग्रेस की ओर से राजमणि पटेल का कार्यकाल राज्यसभा के लिए खत्म हो जाएगा। लिहाजा कांग्रेस की एक सीट के लिए कई दावेदार मैदान में हैं। दरअसल राज्यसभा पिछले दरवाजे से जाने का आसानरास्ता है, जबकि लोकसभा- विधानसभा का चुनाव जनता के बीच जाकर लडऩा पड़ता है। यही कारण है कि राज्यसभा की एक सीट के लिए कांग्रेस के कई दिग्गज मैदान में डटे हैंं और जोड़तोड़ में भी जुटे हैं। अब देखना यह है कि कांग्रेस आलाकमान इस बार राज्यसभा में किसको भेजता है। वहीं भाजपा भी नए चेहरों के साथ चौंकाने वाले नाम ला सकती है। दूसरी तरफ अभी जो लोकसभा के चुनाव सामने हैं उसके लिए भी इंदौर सहित प्रदेश की 29 सीटों के लिए कांग्रेस को जीताऊ-दमदार चेहरे नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद अधिकांश के हौंसले पस्त हो गए हैं। इंदौर में तो लगभग 40 सालों से कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार रही है और उसके सारे दिग्गज एक-एक कर यह चुनाव हारते रहे हैं और अब ऐसा एक भी चमकदार चेहरा नहीं बचा जो टक्कर भी दे सके। पूर्व की तरह इस बार भी पैराशूट उम्मीदवार की चर्चा हो रही है, क्योंकि वर्तमान में कांग्रेस के अधिकांश चेहरे लोकसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि पिछला लोकसभा चुनाव ही भाजपा के शंकर लालवानी ने साढ़े 5 लाख वोट से जीता था और अभी विधानसभा में तो सभी 9 सीटें भाजपा विधायकों ने जीत ली और कई सीटों पर तो हार और जीत का अंतर भी अत्यधिक रहा है, जिसके चलते कोई भी उम्मीदवार कांग्रेस का बड़ी हार के लिए चुनाव नहीं लडऩा चाहता।