मप्र में भाजपा का यूपी-बंगाल मॉडल क्या गुल खिलाएगा?
भोपाल । मध्य प्रदेश चुनाव के लिए सत्ताधारी भाजपा ने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी है। इसमें 39 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित किए गए हैं। भाजपा की इस लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार सांसदों के भी नाम हैं। भाजपा ने प्रह्लाद सिंह पटेल को उनके भाई जालम सिंह पटेल की जगह नरसिंहपुर से टिकट दिया है। वहीं, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर-1 से उम्मीदवार बनाया हैं।
ये कोई पहला मौका नहीं है जब भाजपा ने किसी राज्य के चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों पर दांव लगाया हो। पार्टी यूपी, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में भी ये प्रयोग कर चुकी है। भाजपा ने 2022 के यूपी चुनाव में केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को अखिलेश यादव के खिलाफ करहल सीट से चुनाव मैदान में उतारा था। बघेल चुनाव हार गए लेकिन अखिलेश को मजबूत चुनौती दी थी। त्रिपुरा में केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने भी विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतीं भी। बघेल और भौमिक का केंद्र में मंत्री पद बरकरार रहा।
बंगाल में हो चुका है सफल प्रयोग
पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी भाजपा ने बाबुल सुप्रियो के साथ ही सांसद लॉकेट चटर्जी और निशिथ प्रमाणिक समेत पांच सांसदों को उम्मीदवार बनाया था। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी और राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता को हार मिली। निशिथ प्रमाणिक 57 वोट के करीबी अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे थे और जगन्नाथ सरकार ने भी अपनी सीट निकाली। भाजपा के तीन हैवीवेट उम्मीदवार भले ही अपनी सीट भी नहीं जीत पाए हों लेकिन आसपास की कई सीटों पर पार्टी की जीत के लिए उनको श्रेय दिया गया था। भाजपा की सीटों में जबरदस्त इजाफा हुआ और पार्टी सत्ताधारी टीएमसी के बाद सीटों की संख्या के लिहाज से दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, बाबुल सुप्रियो को अपनी सीट पर हार का खामियाजा मंत्री पद से हाथ धोकर भुगतना पड़ा। निशिथ प्रमाणिक को जीत का इनाम मिला और वे मोदी मंत्रिमंडल में जगह बनाने में सफल रहे। अब भाजपा ने जब नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को मध्य प्रदेश के रण में उतार दिया है तो इसे इन नेताओं के लिए अग्निपरीक्षा की तरह देखा जा रहा है। कहा तो ये भी जा रहा है कि नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते के लिए अब केंद्र की राजनीति में वजूद, मोदी मंत्रिमंडल में कुर्सी और 2024 चुनाव का टिकट इस चुनाव में दांव पर है। नरेंद्र सिंह तोमर समेत तीनों केंद्रीय मंत्रियों की सियासत का भविष्य क्या होगा? 2023 का चुनाव परिणाम इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो गया है। चुनावी दरिया पार करने में सफल रहे तो आगे की राह आसान होगी और अगर डूब गए तो सियासत पर ग्रहण होगा।
एक सीट पर नजर, कई सीटों पर निशाना
भाजपा 2018 के चुनाव नतीजों से सबक लेकर 2023 के लिए व्यूह रचना में जुटी है। ग्वालियर रीजन में कांग्रेस भारी पड़ी थी और इंदौर में भी भाजपा का गणित गड़बड़ हो गया था। ग्वालियर में कांग्रेस के खेवनहार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा में आ चुके हैं लेकिन पार्टी किसी तरह की ढिलाई बरतने के मूड में नहीं है। नरेंद्र सिंह तोमर की गिनती ग्वालियर संभाग के प्रभावशाली नेताओं में होती है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का ग्वालियर के साथ ही गुना और मुरैना में भी अच्छा प्रभाव है। वहीं, कैलाश विजयवर्गीय इंदौर, गणेश सिंह सतना, राकेश सिंह जबलपुर, उदयप्रताप सिंह होशंगाबाद, रीति पाठक सीधी क्षेत्र में प्रभावशाली नेता हैं। ये नेता जिन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनके साथ ही आसपास की सीटों कई सीटों पर भी परिणाम प्रभावित कर पार्टी की सीटों की संख्या बढ़ा सकते हैं।
सामूहिक नेतृत्व का फॉर्मूला या शिवराज की घेराबंदी
केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को टिकट के पीछे भाजपा की सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले को धार देने की रणनीति भी एक वजह बताई जा रही है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा किसी एक नेता को उम्मीदवार बताने से बच रही है और सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले पर चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुकी है। जब नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय जैसे चेहरों की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ,उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भोपाल में थे। नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय, दोनों को ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का करीबी माना जाता है। पिछले चुनाव में आकाश विजयवर्गीय को भाजपा से टिकट मिलने के बाद कैलाश विजयवर्गीय चुनाव नहीं लड़ पाए तो इसके पीछे भी शिवराज के एक परिवार, एक टिकट फॉर्मूले को जिम्मेदार माना गया। भाजपा ने अबकी विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर को टिकट देकर ये संदेश दे दिया है कि मध्य प्रदेश में शिवराज ही भाजपा नहीं हैं।